
रिश्ता हमारा ज़रा कम सच्चा था
पर रुक जाते तो अच्छा था
रोया बहुत फिर ये तुम्हारे लिए
क्या करें ये दिल | बच्चा था
मुहब्बत ना सही शायद
यारी तो थी
ज़रूरत ना सही शायद
पर बेकरारी तो थी
कुछ यादें होंगी ना पास तुम्हारे
छुप छुप कर मिलने के किस्से हमारे
हमसे अलग से थे जैसे बाकी सारे
पर हमारा साथ जैसे ईंट की दीवारें
अफसोस बाकी है क्या अब भी
याद हैं क्या गिले शिकवे सभी
ज़िन्दगी चाल तो बहुत चल रही
पर क्या मिल सकेंगे हम फिर कभी
अच्छा गर हम फिर मिले,
फिर मुस्कुराओगे तो ना
दिल को समझा लेना
पर नज़रें तो मिलाओगे ना?
कभी उदास न होना
ना बिन मतलब का रोना धोना
मुस्कुराहट अपनी कभी ना खोना
भले ही टूट जाए मनपसंद खिलोना
कभी अगर छोटा मन हो ना
ती पकड़ लेना कोई कोना
निराश तुम ना होना
चाहे पकड़े रही बिछौना
अंधेरे में भी वक़्त को टोना
पर टूट कर पलके ना भिगीना
वक़्त को प्यार के मोती से पिरोना
कुछ ना हो तो खूब तुम सोना
हमें वो इतवार लाना था
जिसमें गुज़रा एक जमाना था
बचपन से लेकर पचपन तक
हर कोई जिसका दीवाना था !
पर कैसा ये इतवार आ गया
जो सप्ताह के सातों दिन खा गया
खामोशी से गिरा बिजली सा
और अपना एहसास दिला गया।
रब जाने कब वो इतवार लौटेगा
जब ये लॉकडाउन भी टूटेगा
छुट्टियां मनेगी हर हफ्ते फिर से
और हर कोई फिर से झूमेगा।
अब कब वो इतवार आएगा
जो सबका कल लौटाएगा
हफ्ते भर की सहज शिकन को
चुटकी में ले जाएगा!

मालूम नहीं,
कब आए हम
इधर उधर किया थोड़ा मन
फिर यूंही बस बैठे बैठे
बीत गया पूरा बचपन !!
मालूम नहीं,
कब स्कूल गए
इधर उधर की थोड़ी अनबन
कब यूंही बस चलते चलते
बीत गया पूरा लड़कपन !!
मालूम नहीं,
कब वक़्त गया
इधर उधर में हुई अकिंचन
फिर यूंही बस बढ़ते बढ़ते
उम्र ही चली अब पचपन।

ए चांद कुछ सवाल हैं
जिनपर बहुत बबाल हैं
फिर भी तुम सुलझे से हो
ये कितना कमाल है
ये जो तुम पर दाग है
क्या ये बीता कोई आग हैं
या सबसे तुम छुपा रहे
ऐसा कोई राग है
ये जो तुम में चमक उठी
क्या दुनिया भी दमक उठी
या फिर तुम्हें यूं देख कर
किसी कि खुशबू महक उठी
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